आज कुछ पुराने पन्ने पलटे, तो तेरी याद आई
बहुत दिन हो गए, तू आया नहीं।
मन की गहराई मै कहीं दिखा नहीं,
कहा छिपा है तू, इस तरह ख़ामोशी से।
बैचैन सी हो गई है ज़िंदगी तेरे बिना,
खुली किताबों के खाली पन्ने इंतज़ार मै है।
शब्दों के पैर मचल रहे है चलने को,
कहा छीप गया है इन ज़िम्मेदारियों मै।
अभी तो सफ़र बहुत लंबा है,
साथ रहना है, साथ चलना है, साथ निभाना है,
तेरे बिना कुछ कमी सी लग रही है जीवन मै,
ऐमेरे अंदर के लेखक कहा छिपा है तू।
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